Tuesday, November 18, 2008

हिन्दू या मुस्लिम नहीं सिर्फ आतंकवादी

मालेगांव में हुए विस्फोटों में मारे गए लोगों को लेकर जितनी हाय-तौबा नहीं हो रही उससे अधिक हिन्दू संगठन के नाम पर भारत का चौथा स्तंभ और एटीएस चीख रही है। बात यह मायने नहीं रखती कि विस्फोट करने वाला हिन्दू है या मुसलमान, बल्कि गंभीर विषय तो यह है कि जो भी ऐसा कर रहा है वह आम आदमी की जिन्दगी से खेल रहा है। जीने के लिए जीवन पाने वाले इंसान को असमय मौत की नीद सुलाने वाले सिर्फ आतंकवादी हो सकते हैं, कोई और नहीं। सबको चाहिए कि इनके खात्मे की बात करें।अक्ससर फिल्मों और धर्म का उपदेश देने वालों की जबान यह दलील देते नहीं थकती कि भारत में रहने वाले लोगों को राजनेता धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर बांटते हैं। इसके लिए एक फिल्म में तो नाना पाटेकर ने एक हिन्दू व एक मुसलमान पात्र की उंगलियों से खून तक निकालकर दिखाया था। नाना के डायलाग थे कि खून देखकर बताओं कि कौन सा खून हिन्दू का और कौन सा मुसलमान का है। तब कोई नहीं बोल पाया और विवाद का पटाक्षेप हो जाना दिखाया गया। भारतीय समाज को नई दिशा देने का बीड़ा उठाए इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के कर्ता-धर्ता वैसे तो अपने को बुद्धिजीवी बताते हैं पर वे यह भूल चुके हैं कि भारत के विभिन्न प्रांतों में हुए बम विस्फोटों के लिए हिन्दू और मुस्लिम संगठनों की खाई कोई और नहीं बल्कि ये ही गहरी करते जा रहे हैं। विस्फोट किसी ने किए हो, जान तो आदमी की गई। नुकसान आदमी का हुआ और इस तरह का काम करने वाला सिर्फ आतंकवादी हो सकता है। उसे हिन्दू व मुसलमान की सीमा में बांटना मेरे नजरिये से गलत है। हम तो वही कर रहे हैं जो ऐसा करने वाले चाहते हैं। यदि यह मान लें कि सिमी या अन्य इस्लामिक संगठन ऐसा कर रहे हैं तो उसे यह नहीं माना जाना चाहिए कि मुस्लिम कौम ऐसा कर रही है। इसी तरह यदि किसी हिन्दूवादी संगठन ने ऐसा किया तो हिन्दू कौम का नाम नहीं आना चाहिए। नाम आतंकवाद का होना चाहिए और इसे रोकने के लिए सबको एकजुट होकर सामने आना चाहिए।

4 comments:

Vinay said...

बहुत सही बात कही!

विष्णु बैरागी said...

यह छोटी सी बात हमारे बडे भेजे में आने के लिए पहली ही दिन से दरवाजा खटखटा रही थी लेकिन हमें यह तब ही सुनाई दी जब -'हिन्‍दू आतंकवादी' वाला विशेषण हम पर चस्‍पा हुआ । 'मान कर' चलने वालों को 'जानने की अकल' तब आई जब पिटाई शुरु हुई । देर आयद, दुरुस्‍त आया ।
कोई भी समझदार आदमी आपसे असहमत नहीं होगा ।

Unknown said...

आपकी बात सही है. मीडिया, जांच एजेंसियों, राजनितिक दलों और सरकार को आतंकवाद से कोई परेशानी नहीं है. यह तो एक वोट बटोरने का टूल मिल गया है उन्हें. आतंकवाद के नाम पर अपने वोट बेंकों का पोषण करो और वाहवाही लूटो - मीडिया को टी आर पी, जाँच एजेंसियों को तमगे, राजनितिक दलों और सरकार को वोट जिस से मिलेगा सत्ता सुख. जिन को मरना है वह तो मरेंगे.

Manish Kumar said...

atankwaadi chahe kisi bhi mazhab ka ho uske khilaf sari janta aur raajnetaon ko ek jut rahna chahiye tabhi iska muqabla kiya ja sakta hai