Saturday, December 6, 2008
चोट्टे(चोर) नेताओं से ऐसी ही उमीद थी
जिस घर में जवान बेटे की मौत का मातम मनाया जा रहा हो और अंतिम संस्कार से संबंधित पारंपरिक रस्मों की पूर्ति की जा रही हो, वहां कोई नेता अपनी सुरक्षा के नाम पर कुत्ता भेज दे। इसे पढ़ा लिखा व्यक्ति तो बर्दाश्त नहीं ही करेगा जो अनपढ़ गंवार कहे जाते हैं वे भी इस पर बौखला उठेंगे। मेजर संदीप के पिता तो इसरो में रहे हैं। उनका बिगड़ना स्वाभाविक है। यहां बात कर रहे हैं, केरल के मुख्यमंत्री की जो शहीद मेजर के घर गए पर उनके पहुंचने से पहले स्नाइफर डाग को जांच के नाम पर भेजा गया। इस पर शहीद संदीप के पिता ने मुख्ययमंत्री को अपने घर में घुसने देने से इनकार कर दिया था। केरल के मुख्यमंत्री इसके लिए डेढ़ घंटे तक इंतजार करते रहे थे। इसके बाद यह तो तय था कि केरल के मुख्यमंत्री शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के परिजनों के खिलाफ देर-सबेर अपनी भड़ास निकालेंगे पर यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा, इसकी आशा न थी। इतना ही नहीं, यह भड़ास शहादत का अपमान करने के रूप में निकलेगी, इसकी भी उम्मीद न थी। मुख्यमंत्री अच्युतानंदन ने कह दिया था कि शहीद का घर न होता तो कुत्ता भी उस घर में न जाता। इसके अलावा भाजपा नेता मुतार अब्बास नकवी और यूपीए सरकार के मंत्री शकील अहमद से तो गंभीर वक्तव्य की तो अपेक्षा बुद्धिजीवी वर्ग करता भी नहीं है। इसकी वजह यह है कि ये नेता जमीन पर संघर्ष करने वाले नहीं बल्कि चैनलों के माइक पर नेतागिरी करने वाले राजनेता हैं। इनको चोट्टे(चोर) नेता का नाम दिया जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि जनता का भला करने के बजाय ऐसे नेताओं ने सिर्फ पार्टियों का दामन थाम कर चापलूसी के माध्यम से पार्टी का माउथपीस बनने में ही सारी ताकत लगा दी है। इस बात की सराहना तो इलेक्ट्रानिक मीडिया की करनी होगी, कि जांबाजों का उत्साहवर्धन करने और उन्हें अपमानित करने का काम इन दिनों कर रहे हैं। मौजूदा दौर में अपने खिलाफ कुछ भी न सुन पाने की राजनेताओं की मानसिक प्रवृत्ति का खुलासा भी मुंबई हमले के बाद आए राजनेताओं के बयानों से हुआ है। इसलिए इनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि ये चेतेंगे या फिर ऐसा कुछ करेंगे कि आम जन मानस यह मान सके कि नेता सुधरे हैं। भाजपा, राजद, कांग्रेस समेत अन्य दलों के नेता हमेशा की तरह अवसर तलाश रहे हैं कि कोई मौका मिले तो अपने विरोधी को नीचा दिखा सकें।
Saturday, November 22, 2008
पुलिसिया कार्रवाई का सच
चुनाव के नाम पर कार्रवाई करने के नाम पर रिकार्ड की जांच किए बगैर प्रकरण तैयार रही भोपाल पुलिस ने कुछ बदमाशों को वही सजा देने का खाका जिला प्रशासन को पेश किया है जो सजा संबंधित बदमाश भुगत रहा है। भोपाल पुलिस ने जिला बदर की सजा भुगत रहे एक अपराधी का फिर से जिला बदर करने का प्रस्ताव पेश किया है। इस बदमाश के जिला बदर की अवधि अगले साल फरवरी में समाप्त होने वाली है। शांतिपूर्ण चुनाव के नाम पर जिला बदर के प्रस्ताव भेजे जाने के पुलिस के इस तरह के कारनामों को देख प्रशासन के अफसर असमंजस में हैं। ऐसे मामलों को जिला दंडाधिकारी कार्यालय वापस लौटा रहा है। यह मामला है एमपी नगर थाना क्षेत्र से छः माह के लिए जिला बदर किए गए बदमाश अंकित जवादे का। चोरी, नकबजनी, लूट के मामलों में इस बदमाश को तड़ीपार करने के बाद अंकित के जिला बदर समाप्ति की अवधि फरवरी 09 में समाप्त हो रही है। बावजूद इसके जवादे को जिला बदर करने का नया प्रस्ताव इस जिले के हबीबगंज थाने से तैयार कर अपर जिला मजिस्ट्रेट के यहां भेज दिया गया। वहां जब इसकी जांच की गई तो अपर जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय के रिकार्ड से पता चला कि अभी तो इसका जिला बदर हो नहीं सकता। लिहाजा उस प्रस्ताव को लौटा दिया गया। कारगुजारियां ये भी हैंइसके अलावा एक अन्य मामले में एक महिला रजनी पत्नी हरभजन कलसी का भी जिला बदर का प्रस्ताव लौटाया गया है। इसके लिए अशोका गार्डेन थाने से दोबारा प्रस्ताव आया था। चुनाव के नाम पर कार्रवाई करने में पुलिस की हड़बड़ी का अंदाजा इससे भी लगता है कि एक व्यक्ति के खिलाफ एक से अधिक थानों से जिला बदर के प्रस्ताव आ रहे हैं। मसलन बदमाश हल्कू उर्फ लखन सिंह के विरुद्ध शाहपुरा थाने से 5 नवबर को जिला बदर का प्रस्ताव आने के बाद 10 नवंबर को हबीबगंज पुलिस ने भी इसे तड़ीपार करने का आवेदन लगा दिया। इसी तरह निशातपुरा पुलिस के आवेदन पर अफरोज अली के विरुद्ध 16 जून 08 से जिला बदर की कार्यवाही चल रही है। इस मामले में अपर जिला मजिस्ट्रेट के नोटिस के बाद भी पुलिस गवाहों के बयान तो नहीं करा पाई, अलबत्ता एक
नया प्रस्ताव निशातपुरा थाने से तैयार कर इस व्यक्ति को जिला बदर करने के लिए फिर पेश कर दिया गया। अफसरों का कहना है कि जिस तरीके से पुलिस रिकार्ड की जांच किए बगैर प्रकरण तैयार कर कार्रवाई के लिए भेज रही है, यदि इस मामले को चुनाव आयोग व न्यायालय ने गंभीरता से लिया तो जवाब देना मुश्किल होगा।
नया प्रस्ताव निशातपुरा थाने से तैयार कर इस व्यक्ति को जिला बदर करने के लिए फिर पेश कर दिया गया। अफसरों का कहना है कि जिस तरीके से पुलिस रिकार्ड की जांच किए बगैर प्रकरण तैयार कर कार्रवाई के लिए भेज रही है, यदि इस मामले को चुनाव आयोग व न्यायालय ने गंभीरता से लिया तो जवाब देना मुश्किल होगा।
Tuesday, November 18, 2008
हिन्दू या मुस्लिम नहीं सिर्फ आतंकवादी
मालेगांव में हुए विस्फोटों में मारे गए लोगों को लेकर जितनी हाय-तौबा नहीं हो रही उससे अधिक हिन्दू संगठन के नाम पर भारत का चौथा स्तंभ और एटीएस चीख रही है। बात यह मायने नहीं रखती कि विस्फोट करने वाला हिन्दू है या मुसलमान, बल्कि गंभीर विषय तो यह है कि जो भी ऐसा कर रहा है वह आम आदमी की जिन्दगी से खेल रहा है। जीने के लिए जीवन पाने वाले इंसान को असमय मौत की नीद सुलाने वाले सिर्फ आतंकवादी हो सकते हैं, कोई और नहीं। सबको चाहिए कि इनके खात्मे की बात करें।अक्ससर फिल्मों और धर्म का उपदेश देने वालों की जबान यह दलील देते नहीं थकती कि भारत में रहने वाले लोगों को राजनेता धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर बांटते हैं। इसके लिए एक फिल्म में तो नाना पाटेकर ने एक हिन्दू व एक मुसलमान पात्र की उंगलियों से खून तक निकालकर दिखाया था। नाना के डायलाग थे कि खून देखकर बताओं कि कौन सा खून हिन्दू का और कौन सा मुसलमान का है। तब कोई नहीं बोल पाया और विवाद का पटाक्षेप हो जाना दिखाया गया। भारतीय समाज को नई दिशा देने का बीड़ा उठाए इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के कर्ता-धर्ता वैसे तो अपने को बुद्धिजीवी बताते हैं पर वे यह भूल चुके हैं कि भारत के विभिन्न प्रांतों में हुए बम विस्फोटों के लिए हिन्दू और मुस्लिम संगठनों की खाई कोई और नहीं बल्कि ये ही गहरी करते जा रहे हैं। विस्फोट किसी ने किए हो, जान तो आदमी की गई। नुकसान आदमी का हुआ और इस तरह का काम करने वाला सिर्फ आतंकवादी हो सकता है। उसे हिन्दू व मुसलमान की सीमा में बांटना मेरे नजरिये से गलत है। हम तो वही कर रहे हैं जो ऐसा करने वाले चाहते हैं। यदि यह मान लें कि सिमी या अन्य इस्लामिक संगठन ऐसा कर रहे हैं तो उसे यह नहीं माना जाना चाहिए कि मुस्लिम कौम ऐसा कर रही है। इसी तरह यदि किसी हिन्दूवादी संगठन ने ऐसा किया तो हिन्दू कौम का नाम नहीं आना चाहिए। नाम आतंकवाद का होना चाहिए और इसे रोकने के लिए सबको एकजुट होकर सामने आना चाहिए।
Sunday, November 16, 2008
गंदगी में भी भ्रष्टाचार
इंसान कितना भी नीचे गिर जाए पर वह इस बात का तो ध्यान रखेगा कि यदि वह अपने घर की गंदगी हटाने के लिए किसी को पैसे दे तो सामने वाले से घर की गंदगी हटवा ही ले। मध्य प्रदेश में इसके इतर परिणाम सामने आए हैं। यह खेल खेला है, केन्द्र सरकार की ओर से भेजे गए स्वच्छता का सर्वे करने वाले दूतों ने जिन्होंने ग्राम पंचायतों को निर्मल घोषित कराने के नाम पर सरपंचों से दस हजार रुपए ऐंठे और एक लाख रुपए बतौर इनाम देने की अनुशंसा कर दी। प्रदेश के नालायक सरपंचों ने अपनी जेब भरने के लिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले लोगों को तो लाभ दिया ही, उस महान हस्ती का भी नाम बदनाम कर दिया जिसे महामहिम कहा जाता है। जी, हां, हम बात कर रहे हैं भारत के राष्ट्रपति की जिनके नाम का एवार्ड इन सरपंचों को मिल चुका है। मध्य प्रदेश में काम करने वाली एक सर्वे एजेंसी एग्रीकल्चर फाइनेंस कार्पोरेशन लिमिटेड दिल्ली के सर्वेयरों व अफसरों के जो कारनामे सामने आए हैं, उससे जाहिर होता है कि इस हृदय प्रदेश की जिन 503 पंचायतों का सर्वे उनके द्वारा किया गया है, उसमें भ्रष्टाचार जमकर किया गया है। इसकी पोल खोली है भोपाल जिला पंचायत क्षेत्र के ग्राम साइस्ता खेड़ी के सरपंच ने जिसमें सीईओ जिला पंचायत भोपाल को सारी बात बतायी लेकिन बाद में वह भी पांच हजार रुपए देकर अपनी पंचायत को निर्मल घोषित कराने में शामिल हो गया और अब कुछ नहीं बोलना चाहता। एक माह पहले भोपाल जिले की जिन नौ पंचायतों को निर्मल घोषित किया गया उनमें से कई पंचायतों के सरपंच तो एवार्ड पाने के बाद शर्मिंदा भी हैं। वे यह नहीं तय कर पा रहे कि अपनी पंचायत को मिले एवार्ड का गुणगान करें या फिर असलियत को परदे के पीछे रहने देने के लिए कुछ दिन तक पंचायत को स्वच्छ बनाने का काम कर डालें। इनमें बैरसिया जनपद पंचायत की खुखडि़या पंचायत का नाम लिया जा रहा है।
रात में रुकते हैं पंचायत में भोपाल जिले में सामने आए इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सीईओ जिला पंचायत ने कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। जिला समन्वयक समग्र स्वच्छता अभियान आस्था अनुरागी के अनुसार जिले की 29 पंचायतों को निर्मल घोषित करने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया था जिस पर अगस्त में दिल्ली से एक टीम यहां गांवों में स्वच्छता का सर्वे करने आई थी। एग्रीकल्चर फाइनेंस कार्पोरेशन लिमिटेड के हेड शैलेन्द्र सिंह ने यहां दो सर्वेयर रविकांत चौबे व शशिकांत त्रिपाठी को भेजा था। दोनों ही सर्वेयर जिला पंचायत में आने के बाद साथ में गांवों में गए और स्वच्छता संबंधी जानकारी ली। रात में ये गांव में ही रुक जाते थे और सरपंचों से दस हजार रुपए की मांग सीधे करते थे।
कौन सा तरीका अपनाया पंचायतों की स्वच्छता का सर्वे करने आने वाले ये दोनों सदस्य रात में सरपंचों को इस बात का प्रलोभन देते थे कि दस हजार रुपए दो, ताकि पंचायत को निर्मल घोषित करा दें और ऐसा होने पर राष्ट्रपति की ओर से प्रमाण पत्र व पुरस्कार राशि मिलेगी। जब सरपंच पंचायत में गंदगी होने की बात कहते तो यह कहा जाता कि रिपोर्ट तो उन्हें देनी है। जिला पंचायत को अफसरों को इसकी भनक न लगने देने की नसीहत भी दी जाती। इस तरह कुछ पंचायत सरपंचों से रकम ले ली गई।
कैसे हुआ खुलासा इस मामले का खुलासा फंदा जनपद पंचायत की साइस्ताखेड़ी पंचायत के सरपंच ने किया। कार्यालय आकर इनके द्वारा दस हजार मांगने की जानकारी दी गई तो मोबाइल से वहीं पर एक बार फिर बात करने के लिए कहा गया। सरपंच ने मोबाइल की आवाज तेज कर बात की तो दस हजार की मांग की गई। सरपंच ने इतना दे पाने में आपत्ति की तो कहा गया कि अभी पांच दे दो और पांच हजार बाद में दे देना। इसके लिए एक अकाउंट नंबर भी बताया गया।
एजेंसी के हेड ने फोन पर सारी कहा इस मामले में की जा रही सौदेबाजी की पोल खुलने पर जब एजेंसी के हेड शैलेन्द्र सिंह से बात की गई तो उनके द्वारा सारी कहा गया और इसे लड़कों की
हरकत बताया गया। इस पर जिला पंचायत की ओर से कुल 29 में से पूर्व प्रस्तावित 16 पंचायतों को निर्मल घोषित कराने की अनुशंसा प्रावधानों के अनुसार करने को कहा गया। जिला समन्वयक ने बताया कि पहले तो हामी भर दी गई लेकिन बाद में फोन पर सिर्फ नौ पंचायतों की अनुशंसा किए जाने की जानकारी दी गई। इसमें से दो पंचायतें ऐसी थीं जिनको जिला पंचायत ने ही रिकमंड नहीं किया था। ये पंचायतें गंदगी से सराबोर हैं और निर्मल पंचायत शब्द को बदनाम कर रही हैं।
रात में रुकते हैं पंचायत में भोपाल जिले में सामने आए इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सीईओ जिला पंचायत ने कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। जिला समन्वयक समग्र स्वच्छता अभियान आस्था अनुरागी के अनुसार जिले की 29 पंचायतों को निर्मल घोषित करने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया था जिस पर अगस्त में दिल्ली से एक टीम यहां गांवों में स्वच्छता का सर्वे करने आई थी। एग्रीकल्चर फाइनेंस कार्पोरेशन लिमिटेड के हेड शैलेन्द्र सिंह ने यहां दो सर्वेयर रविकांत चौबे व शशिकांत त्रिपाठी को भेजा था। दोनों ही सर्वेयर जिला पंचायत में आने के बाद साथ में गांवों में गए और स्वच्छता संबंधी जानकारी ली। रात में ये गांव में ही रुक जाते थे और सरपंचों से दस हजार रुपए की मांग सीधे करते थे।
कौन सा तरीका अपनाया पंचायतों की स्वच्छता का सर्वे करने आने वाले ये दोनों सदस्य रात में सरपंचों को इस बात का प्रलोभन देते थे कि दस हजार रुपए दो, ताकि पंचायत को निर्मल घोषित करा दें और ऐसा होने पर राष्ट्रपति की ओर से प्रमाण पत्र व पुरस्कार राशि मिलेगी। जब सरपंच पंचायत में गंदगी होने की बात कहते तो यह कहा जाता कि रिपोर्ट तो उन्हें देनी है। जिला पंचायत को अफसरों को इसकी भनक न लगने देने की नसीहत भी दी जाती। इस तरह कुछ पंचायत सरपंचों से रकम ले ली गई।
कैसे हुआ खुलासा इस मामले का खुलासा फंदा जनपद पंचायत की साइस्ताखेड़ी पंचायत के सरपंच ने किया। कार्यालय आकर इनके द्वारा दस हजार मांगने की जानकारी दी गई तो मोबाइल से वहीं पर एक बार फिर बात करने के लिए कहा गया। सरपंच ने मोबाइल की आवाज तेज कर बात की तो दस हजार की मांग की गई। सरपंच ने इतना दे पाने में आपत्ति की तो कहा गया कि अभी पांच दे दो और पांच हजार बाद में दे देना। इसके लिए एक अकाउंट नंबर भी बताया गया।
एजेंसी के हेड ने फोन पर सारी कहा इस मामले में की जा रही सौदेबाजी की पोल खुलने पर जब एजेंसी के हेड शैलेन्द्र सिंह से बात की गई तो उनके द्वारा सारी कहा गया और इसे लड़कों की
हरकत बताया गया। इस पर जिला पंचायत की ओर से कुल 29 में से पूर्व प्रस्तावित 16 पंचायतों को निर्मल घोषित कराने की अनुशंसा प्रावधानों के अनुसार करने को कहा गया। जिला समन्वयक ने बताया कि पहले तो हामी भर दी गई लेकिन बाद में फोन पर सिर्फ नौ पंचायतों की अनुशंसा किए जाने की जानकारी दी गई। इसमें से दो पंचायतें ऐसी थीं जिनको जिला पंचायत ने ही रिकमंड नहीं किया था। ये पंचायतें गंदगी से सराबोर हैं और निर्मल पंचायत शब्द को बदनाम कर रही हैं।
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