के रूप में धरती से गायब हो रहा है। घटने वाले इस जल की मात्रा 1.86 बिलियन क्यूबिक मीटर है। यह स्थिति उन दिनों में बनती है जब प्रदेश में मानसून प्रभावी नहीं रहता। इस तरह साल भर में वर्षा जल व अन्य माध्यमों से जो 37.19 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी धरती में समाता है, वह अंत में 35.53 बिलियन क्यूबिक मीटर ही रह जाता है।
भोपाल जिले में स्थिति
◘ फंदा विकास खंड में 0.033 बीसीएम पानी का उपयोग हो रहा है।
◘ बैरसिया ब्लॉक में 0.037 बीसीएम पानी की खपत है।
◘ जिले के दोनों ब्लॉकों के लिए वर्ष 2025 तक 0.07 बीसीएम पानी की दरकार होगी।
भू-जल वैज्ञानिक एके बुधौलिया इन हालातों को गंभीर बताते हुए कहते हैं कि शहरी इलाकों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के अलावा धरती के भीतर पानी ले जाने का दूसरा कोई माध्यम शेष नहीं रह गया है। गांवों में जरूर इसके लिए काम किया जा सकता है। यहां के छोटे-छोटे नदी नालों का पानी बोल्डर डालकर रोकें ताकि पानी धीरे-धीरे बहे। इसी के पास एक टैंक बनाया जाए जिसमें भरा पानी धरती में जाएगा। साथ ही स्टाप डैम व परकोलेशन डैम का निर्माण भी भू-जल स्तर में वृद्धि करने में सहायक बनेंगे।
1 comment:
rightly said--rwh and recharge of ground water table with rain water is the solution of water scarcity.Wastage of drinking water in leakages should be minimised.
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